!! माँ !!
मेरी ही सांसों का जीवन हो माँ, मेरी ही दुनिया का उपवन हो माँ, जीवन की ज्योति, समंदर हो तुम, मेरी आंखों की आशा का आंगन हो माँ !!
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मेरी ही सांसों का जीवन हो माँ, मेरी ही दुनिया का उपवन हो माँ, जीवन की ज्योति, समंदर हो तुम, मेरी आंखों की आशा का आंगन हो माँ !!
मन ही मन हम प्रयागराज के लड़कों के जेहन में यह बात जरूर चलती है और विश्वास रहता है कि एक रोज किसी रिजल्ट की पीडीएफ में मेरी सारी उदासियाँ सिमट कर मुझे मेरे धैर्य और संघर्ष का जवाब देने जरूर आएंगी.....
"भिक्षावृत्ति: एक अभिशाप " आज 21वीं सदी चल रही है भारत देश एक उन्नत देश के रूप में उभर कर के विश्व पटल पर छा रहा है आज वही विकासशील भारत एक विकसित भारत की तरफ दौड़ लगा रहा है दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर हो रहे हैं..... लेकिन इन सब के बीच भारत में जड़ जमा चुके भिक्षावृत्ति रूपी कोढ़ भारत देश की विकसित अर्थव्यवस्था के बीच एक बट्टा लग जाता है.... यह एक आर्थिक समस्या के साथ-साथ एक सामाजिक समस्या के रूप में भी उभर कर सामने आ रही है... यदि इसका समय पर उपचार न हुआ तो यह एक कैंसर की तरह फैल जाएगा... इसके जद में आने वाले भिक्षावृत्ति करते हुए वे बच्चे होंगे जो भारत देश की रीढ़ की हड्डी के रूप में खड़े होंगे .. जो भारत देश की दशा और दिशा तय करेंगे... अपने युवा ताकत नए जोश उमंग और उत्साह के साथ इस देश की बागडोर को संभालेंगे....लेकिन यह सब तब हो सकता है जब सरकारें,, NGO आदि भिक्षावृत्ति रूपी कोढ़ को खत्म करने के बारे में पूरे आशा और विश्वास के साथ सोचेंगे और उस पर काम करेंगे.... भारत के सभी राज्यों में भिक्षावृत्ति पर सख्त कानून के साथ अंकुश लगाने की आवश्यकता है *भिक्षावृत्ति की सोच का एक परिचय: भिक्षावृत्ति को समझने से पहले हमें उसके शब्द के अर्थ को ढूंढना होगा, भिक्षा का अर्थ है मांगना और वृत्ति का अर्थ है स्वभाव.... अर्थात जब यह मांगना एक आदत बन जाए..... भीख मांगना एक स्वभाव बन जाए तो उसे सधे शब्दों में भिक्षावृत्ति कहते हैं *कवि घाघ के शब्दों में:- " उत्तम खेती मध्यम बान | निषिध चाकरी भीख निदान " अर्थात जब आजीविका के समस्त रास्ते बंद हो जाए तब भीख मांगना चाहिए * कबीर दास जी इस सम्मान के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते हैं :- * मर जाऊं मांगू नहीं अपने तन के काज | * मंगल मरण समान है मत मांगो कोई भीख इन सब बातों से यही लगता है की भिक्षवर्ती भीख मांगना यह निकृष्ट कामों में से एक है जिसका न समाज के द्वारा कभी समर्थन किया गया था... ** भिक्षावृत्ति के कारण:- जब भिक्षावृत्ति निकृष्ट कामों में से एक है... तो फिर इसके पनपना के कारण क्या है.... इसके जन्मदाता कौन है! जहां तक बात कही और सुनी जा सकती है कि इसका एक कारण आर्थिक अक्षमता और गरीब परिवेश है.... लेकिन आज बड़े पैमाने पर भिक्षवर्ती एक व्यवसाय के रूप में जुड़ गया है, एक निजी सर्वेक्षण संस्था द्वारा भिखारी पर किए गए अध्ययन में पाया गया की 2011 तक भारत में लगभग 56 लाख लोग भिक्षावृत्ति व्यवसाय से जुड़े हैं उनकी संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है वर्तमान में अनुमान है कि भारत में लगभग 86 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भिक्षा प्रतीक के माध्यम से जुड़े हैं, इस तरह का कार्य करने वाले बहुत से भिखारी आज करोड़ों के मालिक हैं, जिनका नाम गूगल सर्च के माध्यम से देखा जा सकता है या राज्यसभा की रिपोर्ट के माध्यम से जाना जा सकता है| * *भिक्षावृत्ति के निवारण के लिए उठाए जाने वाले ठोस कदम:- आजकल मंदिरों के आसपास सार्वजनिक जगहों पर छोटे-छोटे बच्चे भीख मांगते हुए घूमते फिरते हैं.. इसके लिए उनके मां-बाप से मिलकर उनसे सख्ती से पूछताछ किया जाए...वा इन्हें भिक्षवृत्ति करने से रोका जाए और न मानने पर इन्हें कानून के माध्यम से पहली बार में पकड़े जाने पर 3 साल के लिए और दूसरी बार में 10 साल के लिए व्यक्ति को सजा के तौर पर सुधारग्रहो में भेजे जाने का नियम है| गंभीर बीमारी से वह अपंगता से पीड़ित वक्रासित और छोटी उम्र के बच्चे जो इच्छा वृद्धि कर रहे हैं उनके पुनर्वास के लिए एक व्यापक स्तर पर प्रयास करना तथा उनके पुनर्वास गृहों की स्थापना करना उनमें उन्हें उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाए | आज कैलाश सत्यार्थी द्वारा ओपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से व्यापक स्तर पर छोटे बच्चों द्वारा कराई जा रही बंधुआ मजदूरी और भिक्षावृत्ति के खिलाफ व्यापक रूप से जागरूक किया जा रहा है... ऐसे ही तमाम संगठन स्वयंसेवी सहायता समूह को अपने-अपने क्षेत्र में आगे आना चाहिए... और भिक्षवर्ती कर रहे भिखारी के लिए उचित कदम उठाना चाहिए... ताकि वह भविष्य में फिर कभी भिक्षवृत्ति की तरफ ना लौट सके
!! मेरे राम!! तुम जन जन में और मन मन में बसे हो राम हर कण कण और क्षण क्षण में बसे हो राम तुम हमारी वेदना की पुकार हो राम ऋषियों के निर्वेद का सार हो राम हमारी एकाकी जीवन की आस हो राम काया की हर धड़कन की सांस हो राम जीवन तुम्हारे बिन कल्पित नहीं राम तुम संग हो ये जीवन समर्पित है राम अयोध्या ने तुम बिन गुजारा है राम आज आए तुम अब सहारा है राम मेरे आंगन में अब दीप जलेंगे राम नि:शब्द थी मेरी लेखनी अब लिखेंगे राम मेरी निश्छल प्रेम का अँसुवन हो राम भक्तों के मन का इक उपवन हो राम वर्षों से थी विकलता हम खोजते थे राम लौट आए हैं अयोध्या में शबरी के राम!! ---- सौमित्र तिवारी"
"अन्याय के खिलाफ बगावत"
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