@ "हम प्रयागराज के लड़के @
हम प्रयाग के लड़के बंद कमरों में जीवन खपाते हैं हम उन सफलता के लिए संघर्ष करते हैं जिनका सपना हमारे मां-बाप ने देखा है! हम 10 × 10 के कमरे में एक साधना शुरू करते हैं जो हमारे संघर्ष के साथ चलती रहती है यह साधना उस संघर्ष पर खत्म होती है जब हमें सरकारी नौकरी रूपी सफलता मिल जाती है पैसे की तंगी को झेलते हुए, समाज के तानों को सुनते हुए, घर परिवार की आशा की निगाहें एक प्रौढ़ अवस्था में लाकर खड़ी कर देती हैं जीवन जीने का एक तरीका मालूम हो जाता है... जो लड़का कल बिना जिम्मेदारी के गांव में दोस्तों संग टहलता था वही आज एक गंभीर और मजबूत इरादों वाला लड़का बन गया है!
लगातार परीक्षा में मिलती असफलता हमारे जीवन में निराशा की सुनामी का एक ढेर लग जाता है... उस छोटे से कमरे में रात के सन्नाटे में रोते हुए सिसकियां लेते हुए सोचते हैं कि कब ये दुख के बादल छटेंगे कब हमारी भी सफलता की सुबह होगी.... कब हम भी 4800 ग्रेड पे पर साइन करेंगे...!!
पैसे की तंगी और घर से मिले सीमित रुपए में हम अपनी मनचाही चीज नहीं खरीद सकते है...गरीब तबके के बच्चे का जीवन मुफलिसी भरा ही होता है... बाजार में घूमते हुए मन में आता है कि चलो आइसक्रीम खा लेते हैं लेकिन सहसा फिर अपनी परिस्थिति याद आती है की ₹10 का आइसक्रीम खाने से अच्छा है उसमें ₹5 और लगाकर रूम के लिये एक डिब्बा पानी खरीद लेंगे..!!
इस तरह अपनी इच्छाओं को मारते हुए प्रयागराज के लड़के मुफलिसी में भी अपने जीने के तरीके ढूंढ लेता है!
मन ही मन हम प्रयाग के लड़कों के जेहन में यह बात जरूर चलती रहती है और विश्वास रहता है कि एक रोज किसी रिजल्ट की पीडीएफ में मेरी सारी उदासियां सिमट कर मुझे मेरे धैर्य और संघर्षों का जवाब देने आएँगी, जरूर आएँगी....
क्योंकि हम लड़कों को लगता है कि हमारी सफलता हमारा श्रृंगार है हमने इसका श्रृंगार किया तो सब अपने होंगे सपने भी और अपने भी...!!!
तैयारी के साथ बीतता समय और सफलता का ना मिलना वह सारे सपने तोड़ देता है जो हम अपने मां-बाप के लिए देखे थे... सबसे ज्यादा कष्ट उस दौरान होता है जिसके लिए हम सफलता पाना चाहते हैं जिसको हम अपनी सफलता का श्रेय देना चाहते हैं... उनका भौतिक शरीर इस संसार से अलविदा ले लेता है और फिर जीवन में अपार कष्ट होता है क्योंकि हमने उनके हाथों में अपना नियुक्ति पत्र देने के लिए एक सपना संजोया था...लेकिन वह सपना टूट जाता है वह ख्वाब अधूरे रह जाते हैं... और हम तय वक्त पर अपनी सफलता उनको समर्पित नहीं कर पाते हैं!!
गाँव समाज भी हमें भला बुरा कहने लगता है समझ में कुछ मनहूस टाइप के लोग आपके विषय में पान की दुकान पर, चौराहों पर खड़े होकर आपके बारे में पीएचडी करना शुरू कर देते हैं...... वह चौराहों पर खड़े होकर हमारी असफलता का तर्क तो दे सकते हैं लेकिन हम लड़कों का दर्द नहीं समझ सकते .... कोई नहीं देखेगा तुम्हारी जगी हुई रातें, कोई नहीं समझेगा परीक्षा देने जाने के दौरान रेलगाड़ी के जनरल डिब्बो में लटक कर सफर करना, कोई नहीं महसूस करेगा आपके दर्द को.... बस उन लोगों को बाहर आपके ऊपर ज्ञान देना और आपकी मेहनत का मजाक बनाना यही काम रहता है!
इन सभी दुष्ट मानसिकताओं को झेलते हुए हम प्रयाग के लड़के अपने सपनों को पाने के लिए जद्दोजहद में लगे रहते हैं!! लेकिन हम प्रयाग के लड़कों को यकीन है कि मेरी सभी परेशानी रूपी अंधकार के बीच सफलता रूपी सूर्य जरूर चमकेगा उस दिन सब सही हो जाएगा..... जब पीडीएफ में चमकता आपका नाम स्वर्णिम अध्याय लिखेगा उस दिन सभी संघर्षों पर विराम लग जाएगा.. गाँव समाज में पान की दुकानों और चौराहों पर आपके ऊपर पीएचडी करने वाले लोगों की अवधारणा बदल जाएगी उनकी नकारात्मक बातें अब सकारात्मकता में बदल जाएँगी...जो आपकी हार का इंतजार करते थे उनको अपनी सफलता से चौंकाना जरूरी है!!
हम लड़ेंगे हम जीतेंगे और असफलता के सन्नाटों को चीरती हुई सफलता की एक नई इबारत लिखेंगे
!! जय प्रयाग जय इलाहाबाद !!
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